Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जीव अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मृत्यु पाता है, अकेला ही पुण्य पाप करता है और अकेला ही उनका फल पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अकेला ही जीव जन्म और मरण को प्राप्त होता है एक ही धर्म का फल सुख और अधर्म का दुःखरूप फल को भोगता है ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
प्राणी अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मरता है। एवं, अकेला ही धर्म का फला सुख भोगता है और अकेला ही अधर्म का फल दुःख भोगता है और अकेला ही अधर्म का फल दुःख भोगता है।