Manu Smriti
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एकः प्रजायते जन्तुरेक एव प्रलीयते ।एकोऽनुभुङ्क्ते सुकृतं एक एव च दुष्कृतम् ।।4/240

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जीव अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मृत्यु पाता है, अकेला ही पुण्य पाप करता है और अकेला ही उनका फल पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अकेला ही जीव जन्म और मरण को प्राप्त होता है एक ही धर्म का फल सुख और अधर्म का दुःखरूप फल को भोगता है । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
प्राणी अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मरता है। एवं, अकेला ही धर्म का फला सुख भोगता है और अकेला ही अधर्म का फल दुःख भोगता है और अकेला ही अधर्म का फल दुःख भोगता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
प्राणी अकेला ही उत्पन्न होता है। अकेला ही मरता है। अकेला पुण्य को कमाता है और अकेला पाप को।
 
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