Manu Smriti
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नामुत्र हि सहायार्थं पिता माता च तिष्ठतः ।न पुत्रदारं न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति केवलः ।।4/239

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
माता, पिता, स्वजाति सम्बन्धी, पुत्र यह सब परलोक में कुछ भी सहायता नहीं कर सकते हंं केवल धर्म ही वहाँ काम आता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. क्यों कि परलोक में न माता, पिता, न पुत्र, न स्त्री, न ज्ञाति सहाय कर सकते हैं, किन्तु एक धर्म ही सहायक होता है । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि परजन्म में सहायता के लिए न पिता, न माता, न पुत्र, न स्त्री और न ज्ञाति ठहरते हैं, किन्तु केवल धर्म ही ठहरता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अमुत्र हि) परलोक में (पिता माता सहाय-अर्थ न तिष्ठतः) माता पिता सहायता नहीं दे सकते, (न पुत्र दारा) न पुत्र, न स्त्री, (न ज्ञातिः) न रिश्तेदार (धर्मः तिष्ठति केवलः) केवल धर्म ही सहायता देता है।
 
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