Manu Smriti
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यज्ञोऽनृतेन क्षरति तपः क्षरति विस्मयात् ।आयुर्विप्रापवादेन दानं च परिकीर्तनात् ।।4/237
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
1-असत्य भाषण, 2-अभिमान करना, 3-ब्राह्मण का अपमान व अनादर करना, 4-दान देकर प्रकट करना, इन सब कार्यों के करने से यथाक्रम 1-यज्ञ, 2-तप, 3-आयु, 4-दान का नाश हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये चार (४।२३४-२३७) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं - (क) इन श्लोकों में मनु की मान्यताओं से स्पष्ट विरोध है । यहां ४।२३५ में दान देने वाले और लेने वाले को सत्कार पूर्वक स्वर्ग और असत्कारपूर्वक नरक की प्राप्ति लिखी है । जिससे ये स्थान विशेष माने गये हैं । किन्तु मनु के अनुसार स्वर्ग - सुख और नरक - दुःख का नाम है । एतदर्थं ४।८७ - ९१ श्लोकों की समीक्षा द्रष्टव्य है । इसी प्रकार ४।२३७ में यज्ञ, तप, आदि कर्मों के फल का नष्ट होना माना है, जब कि मनु के अनुसार बिना भोगे कर्म - फल नष्ट नहीं होता । शुभ कर्म का शुभ फल और अशुभ कर्म का अशुभ फल जीव को अवश्य मिलता है । और इसी प्रकार यह मान्यता भी (४।२३४) मिथ्या है कि दान दाता जिस भाव से दान देता है, वह उसी वस्तु को प्राप्त कर लेता है । यदि किसी को सन्तान की इच्छा है, तो दान करने से सन्तान कैसे मिल सकती है ? क्यों कि उनका कोई कार्य - कारण भाव सम्बन्ध नहीं है । और मनु जी ने तो ४।२४६ में दान का फल स्वर्ग - सुख प्राप्ति लिखा है । इस प्रकार मनु - विरूद्ध बातें होने से ये श्लोक प्रक्षिप्त हैं । (ख) इन श्लोकों में अयुक्तियुक्त तथा अतिशयोक्तिपूर्ण बातें भी मनु की शैली से विरूद्ध हैं । जैसे ४।२३७ में दान का फल कहने से नष्ट होना, ब्राह्मण की बुराई से आयु का कम होना, तप का फल विस्मय करने से नष्ट होना, और यज्ञ का फल झूठ बोलने से नष्ट होना, इत्यादि बातें अयुक्तियुक्त, कार्य - कारण भाव सम्बन्ध से रहित तथा अतिशयोक्तिपूर्ण होने से मनु प्रोक्त नहीं हैं । क्यों कि यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों का फल अवश्य मिलेगा और झूठ बोलने आदि दुष्कर्मों का फल पृथक् मिलेगा । कोई भी शुभाशुभ कर्म किसी अन्य शुभाशुभ कर्म फल को नष्ट नहीं कर सकते ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि झूठी डींग मारने से यज्ञ, विस्मय से तप, विद्वानों के अपवाद से आयु, और कीर्तन से दान का फल नष्ट हो जाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यज्ञः अनृतेन क्षरति) झूठ बोलने से यज्ञ का फल नष्ट हो जाता है। (तपः क्षरति विस्मयात्) विस्मय से तप नष्ट हो जाता है, (आयुः विप्रापवादेन) विद्वानों के अपवाद से आयु नष्ट हो जाती है, (दानं च परिकीर्तनात्) ढंढोरा पीटने से दान का फल क्षय हो जाता है।
 
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