Manu Smriti
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प्रजानां रक्षणं दानं इज्याध्ययनं एव च ।विषयेष्वप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समासतः । ।1/89

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद पढ़ना, वेद पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना और दान लेना, यह छह कर्म ब्राह्मण के लिये बनाये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ‘‘दीर्घ ब्रह्मचर्य से अध्ययनम् सांगोपांग वेदादि शास्त्रों को यथावत् पढ़ना, इज्या अग्निहोत्र आदि यज्ञों का करना दानम् सुपात्रों को विद्या, सुवर्ण आदि और प्रजा को अभयदान देना, प्रजानां रक्षणम् प्रजाओं का सब प्राकर से सर्वदा यथावत् पालन करना........ (विषयेष्वप्रसक्तिः) विषयों में अनासक्त होके सदा जितेन्द्रिय रहना - लोभ, व्यभिचार, मद्यपानादि नशा आदि दुव्र्यसनों से पृथक् रहकर विनय सुशीलतादि शुभ कर्मों में सदा प्रवृत्त रहना’’ ।
टिप्पणी :
(सं० प्र० षष्ठ समु०) क्षत्रियस्य समासतः ये संक्षेप से क्षत्रिय के कर्म हैं । ‘‘न्याय से प्रजा की रक्षा अर्थात् पक्षपात छोड़के श्रेष्ठों का सत्कार और दुष्टों का तिरस्कार करना, सब प्रकार से सबका पालन दान विद्या धर्म की प्रवृत्ति और सुपात्रों की सेवा में धनादि पदार्थों का व्यय करना इज्या अग्निहोत्रादि यज्ञ करना वा कराना अध्ययन वेदादि शास्त्रों का पढ़ना तथा पढ़ाना और विषयों में न फंसकर जितेन्द्रिय रह के सदा शरीर आत्मा से बलवान् रहना ।’’
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(प्रजानां रक्षणम्) प्रजा की रक्षा (दानम्) दान, (इज्या) यज्ञ, (अध्ययनम् एव च) और पढ़ना (विषयेषु, अप्रसक्तिः च) और विषयों में न लगना (क्षत्रियस्य) क्षत्रिय के धर्म हैं (समासतः) संक्षेप से।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
न्याय से प्रजा की रक्षा अर्थात् पक्षपात छोड़के श्रेष्ठों का सत्कार और दुष्टों का तिरस्कार करना, विद्या-धर्म के प्रवर्तन और सुपात्रों की सेवा में धनादि पदार्थों का व्यय करना, अग्निहोत्रादि यज्ञ करना, वेदादि शास्त्रों का पढ़ना, और विषयों में न फंसकर जितेन्द्रिय रह के सदा शरीर और आत्मा से बलवान् रहना, ये संक्षेप से क्षत्रिय के कर्म आदिष्ट किये।
 
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