Manu Smriti
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सर्वेषां एव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते ।वार्यन्नगोमहीवासस् तिलकाञ्चनसर्पिषाम् ।।4/233

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जल, अन्न, गऊ, भूमि, वस्त्र, तिल, सोना, घी इन सब दानों में से वेद का दान सर्वोत्तम है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जल, अन्न, गौ, पृथिवी, वस्त्र या वासस्थान, तिल, सुवर्ण और घृतादि सभी दानों में वेदविद्या का दान अतिश्रेष्ट है।१ १. स० स० ३।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
वारि अर्थात् जल, अन्न, गौ, भूमि, कपड़ा, तिल, सोना तथा घी इन सब दानों में ब्रह्मदान श्रेष्ठ है। ब्रह्मदान का अर्थ है विद्यादान। विद्यादान में दुरुपयोग का भय नहीं है। इसलिये यह दान न तो देने वाले को दुःख देता है न लेने वाले को। इसलिये इसको सब से श्रेष्ठ दान कहा है।
 
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