Manu Smriti
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यमान्सेवेत सततं न नित्यं नियमान्बुधः ।यमान्पतत्यकुर्वाणो नियमान्केवलान्भजन् ।।4/204

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यम तथा नियम जिनका वर्णन आगे आवेगा उनमें यम को नित्य धारण करें नियम को नहीं। यम को परित्याग कर केवल नियम को धारण करने से पतित हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यमों का सेवन नित्य करे केवल नियमों का नहीं, क्यों कि यमों को न करता हुआ और केवल नियमों का सेवन करता हुआ भी अपने कत्र्तव्य से पतित हो जाता है, इसलिए यम सेवन पूर्वक नियम - सेवन नित्य किया करे । (सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)
टिप्पणी :
अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ।। (योग०) निर्वेरता, सत्यबोलना, चोरीत्याग, वीर्यरक्षण और विषयभोग में घृणा ये ५ यम हैं । शौच, सन्तोष, तपः (हानि - लाभ आदि द्वन्द्व का सहना), स्वाध्याय, वेद का पढ़ना, ईश्वरप्रणिधान - सर्वस्व ईश्वरार्पण, ये ५ नियम कहाते हैं । (सं० वि० वेदारम्भ संस्कार में ऋ० दया० की टिप्पणी) दानधर्म के पालन का कथन -
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
६३-बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिए कि वह निरन्तर यमों का सेवन करे, केवल नियमों का ही सेवन न करे। क्योंकि केवल नियमों का पालन करने और यमों का पालन न करने से अधोगति को प्राप्त होता है। अर्थात्, नियमों के साथ यमों का भी पालन अवश्य होना चाहिये।१
टिप्पणी :
१. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, ये पांच यम है। और शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान, ये पांच नियम है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
बुद्धिमान् पुरुष को चाहिये कि सदा नियमों का पालन करें, न केवल नियमों का। जो पुरुष केवल नियमों का पालन करता है और नियमों का पालन नहीं करता वह नाश को प्राप्त होता है।
टिप्पणी :
अहिंसा सत्यवचनं ब्रह्मचर्यंमकल्पता । अस्तेयमिति पंचैते यमाश्चोपव्रतानि च ।। 137।। यह पाँच यम या उपव्रत कहलाते हैं:-अहिंसा अर्थात् किसी को पीड़ा न देना, सत्य, ब्रह्मचर्य, अकल्पता अर्थात् बनावट न होना और अस्तेय अर्थात् चोरी न करना। अक्रोध गुरु सुश्रूषा शौचमाहारलाघवम् । अप्रमादश्च नियमाः पंचैवोपव्रतानि च ।। 138।। यह पाँच नियम या उपव्रत हैं:-क्रोध न करना, गुरु सेवा, शौच अर्थात् शुद्धि, आहार लाघव अर्थात् थोड़ा खाना, और प्रमाद न करना। पतंजलि ने योगशास्त्र में यह यम और नियम बताये हैं:- यम-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। नियम-शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान। इन तीन श्लोकों का आशय यह है कि नियमों के पालन करने वाले तो बहुत होते हैं, यमों को विरले ही पालन करते हैं। बिना यमों के नियम अधूरे रह जाते हैं। जो केवल नियमों का पालन करता है यमों का नहीं, वह शीघ्र ही पाखण्डी हो जाता है।
 
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