Manu Smriti
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परकीयनिपानेषु न स्नायाद्धि कदा चन ।निपानकर्तुः स्नात्वा तु दुष्कृतांशेन लिप्यते ।।4/201

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दूसरे के बनवाए हुए कुवाँ तालाब आदि, (जिनकी सिद्धि अर्थात् प्रतिष्ठा न हुई हो) में यदि स्नान करें तो उनमें स्नान करने से उनके खुदवाने वाले के पाप को प्राप्त होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. दूसरों के हौज या टप में कभी नहाये क्यों कि वहां नहाकर हौज न टप वाले की गन्दगी या बीमारी से नहाने वाला लिप्त हो जाता है अर्थात् उसकी बीमारियां लग जाती हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(परकीय निपानेषु) दूसरे के हौज या टप में (न स्नायात् च कदाचन) कभी न नहावें। (निपान कर्तुः स्नात्वा तु दुष्कृतांशेन लिप्यते) ऐसा स्नान करने से हौज़ वाले की बीमारी लग जाती है।
 
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