Manu Smriti
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धर्मध्वजी सदा लुब्धश्छाद्मिको लोकदम्भकः ।बैडालव्रतिको ज्ञेयो हिंस्रः सर्वाभिसंधकः ।।4/195

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्मध्वजा को लिए हुए सदा लोभी, छद्मवेशी (बहुरूपिया) की नाई, बहुवेशधारी लोक (संसार) में कपट (धोखे) का प्रचारक वैडालवृत्तिक (बिल्ली की तरह जीवक हिंसा करने वाला) सबका निन्दक, हिंसक (जीवहत्या कर खाने वाला) ये बिल्ली की ओर होने वाले कहलाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धर्म कुछ भी न करे परन्तु धर्म के नाम से लोगों को ठगे सर्वदा लोभ से युक्त कपटी संसारी मनुष्यों के सामने अपने बड़ाई के गपोड़े मारा करे प्राणियों का घातक अन्य से वैर बुद्धि रखने वाला सब अच्छे और बुरों से भी मेल रखे उसको बैडालव्रतिक अर्थात् बिड़ाल के समान घूत्र्त और नीच समझो । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
६२-धर्म कुछ भी करे परन्तु धर्म के नाम से लोगों को ठगने वाले, सर्वदा लोभ से युक्त, कपटी, संसारी मनुष्यों के सामने अपनी बढ़ाई के गपौड़े मारने वाले, प्राणियों के घातक व अन्यों से वैरबुद्धि रखने वाले, और अच्छे बुरे सब से मेल रखने वाले मनुष्य को बैडालव्रतिक समझना चाहिए कि जो बिल्ले के समान धूर्त और नीच होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
बैडालवृत्ति के लक्षण यह हैं:- धर्मध्वजी-धर्मात्मा बनता हो। सदा लुब्ध:-सदा लोभी हो। छाद्मिकः-जाली हो। लोकदम्भकः-लोगों को धोखा देता हो, हिंस्रः-हिंसक हो। सर्वाभिसन्धकः-सबको भड़काता हो।
 
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