Manu Smriti
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यथा प्लवेनाउपलेन निमज्जत्युदके तरन् ।तथा निमज्जतोऽधस्तादज्ञौ दातृप्रतीच्छकौ ।।4/194

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार पत्थर की नाव पर चढ़ कर मनुष्य डूब जाता है उसी प्रकार मूर्ख ब्राह्मण को दान देने वाला और ग्रहण कत्र्ता दोनों नरक में पड़ते हैं, अर्थात् दोनों नरकगामी होते हैं।
टिप्पणी :
मूर्ख ब्राह्मण को दान देने का मनुजी ने 192 व 193 व 194 श्लोक में इस कारण निषेध किया है कि कोई ब्राह्मण मूर्ख रहे। नोट - इस श्लोक के अनुसार आज कल के ब्राह्मण तो अवश्य ही नरकगामी होवेंगे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसे पत्थर की नौका में बैठकर जल में तरने वाला डूब जाता है वैसे अज्ञानी दाता और गृहीता दोनों अधोगति अर्थात् दुःख को प्राप्त होते हैं । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जैसे पत्थर की नौका में बैठके जल में तरने वाला डूब जाता है, वैसे उपर्युक्त प्रकार के अज्ञानी, दाता और गृहीता, दोनों अधोगति अर्थात् दुःख को प्राप्त होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यथा) जैसे (प्लवेन उपलेन) पत्थर की नाव से (निमज्जति) डूब जाता है (उदके तरन्) जल में तैरता हुआ (तथा निमज्जतः) वैसे ही डूब जाते हैं (अधस्तात्) नीचे (अज्ञौ दातृ + प्रतीच्छकौ) दान देने वाले और लेने वाले मूर्ख।
 
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