Manu Smriti
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त्रिष्वप्येतेषु दत्तं हि विधिनाप्यर्जितं धनम् ।दातुर्भवत्यनर्थाय परत्रादातुरेव च ।।4/193

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उत्तम रीति से उपार्जित धन इन तीनों को देने से आगामी जन्म से कुछ फल नहीं देता अर्थात् निष्फल होता है।
टिप्पणी :
मूर्ख ब्राह्मण को दान देने का मनुजी ने 192 व 193 व 194 श्लोक में इस कारण निषेध किया है कि कोई ब्राह्मण मूर्ख रहे। नोट - इस श्लोक के अनुसार आज कल के ब्राह्मण तो अवश्य ही नरकगामी होवेंगे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो धर्म से प्राप्त हुए धन का उक्त तीनों को देना है वह दान दाता का नाश इसी जन्म और लेने वाले का नाश परजन्म में करता है । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
धर्मोपार्जित होने पर भी यदि वह धन उपर्युक्त तीनों को दिया जावे, तो वह दानदाता का नाश इसी जन्म में और दान लेने वाले का नाश परजन्म में करता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो धन विधि के अनुसार कमाया गया हो वह भी यदि बैडालवृत्ति, बकवृत्ति और अवेदवित् को दिया जाय तो दूसरे लोक में दाता के काम नहीं आता।
 
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