Manu Smriti
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तस्मादविद्वान्बिभियाद्यस्मात्तस्मात्प्रतिग्रहात् ।स्वल्पकेनाप्यविद्वान्हि पङ्के गौरिव सीदति ।।4/191

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अतः मूर्ख ब्राह्मण को थोड़ा दान लेने से भी भयभीत होना चाहिये, अन्यथा कीचड़ में फंस कर जिस प्रकार गऊ कष्ट पाती है उसी प्रकार वह भी कष्ट भोगेगा।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तस्मात्) इसलिये (अविद्वान्) वह पुरुष जिसे दान ली हुई वस्तु के प्रयोग का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं है, (विभियात्) डरे (यस्मात् तस्मात् प्रतिग्रहात्) इस उस दान से। (स्वल्पकेन अपि अविद्वान हि) अज्ञानी थोड़े से दान से भी (पंके गौः इव सीदति) कीचड़ में गाय के समान कष्ट उठाता है।
 
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