Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्राह्मण दान लेने का अधिकारी होते हुए भी दान प्राप्ति में आसक्तिभाव को छोड़ देवे क्यों कि दान लेते रहने से इसका ब्राह्मतेज शीघ्र शान्त होने लगता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(प्रतिग्रह समर्थः अपि) दान लेने का अधिकारी होते हुए भी (प्रसंगं तत्र वर्जयेत्) दान लेने का विचार छोड़ दें (प्रतिग्रहेण हि अस्य आशु ब्राह्मं तेजः प्रशाम्यति) दान लेने से इसका ब्रह्मतेज नष्ट हो जाता है।