Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यज्ञ का कराने हारा सदा उत्तम चाल - चलन की शिक्षा कारक विद्या पढ़ाने हारा मामा अर्थात् जिसकी कोई आने की निश्चित तिथि न हो अपने आश्रित बालक बुढ्ढे पीड़ित आयुर्वेद का ज्ञाता स्वगोत्रस्थ वा स्ववर्णस्थ श्वसुर आदि मित्र माता पिता बहन भाई स्त्री पुत्री और सेवक लोगों से विवाद अर्थात् विरूद्ध लड़ाई - बखेड़ा कभी न करे ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
६०-गृहस्थ को चाहिए कि वह ऋत्विक्, पुरोहित, आचार्य, मामा, अतिथि, आश्रित, बालक, बृद्ध, रोगी, वैद्य, स्वगोत्र (पितृपक्ष) वा स्ववर्णस्थ, श्वसुर आदि सम्बन्धी, मित्र तथा मातृपक्ष, माता, पिता, बहिन, भाई, पुत्र, भार्या, पुत्री और सेवकवर्ग से कभी विवाद न करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन लोगों से कभी झगड़ा न करें:- ऋत्विक् जो हवन कराते हैं, पुरोहित, आचार्य, मामा, अतिथि, संश्रित अर्थात् जो लोग अपने आधीन रहते हों, बालक, वृद्ध, रोगी, वैद्य, कुटुम्बी या रिश्तेदार, माता, पिता, बहन, भाई, पुत्र, स्त्री, लड़की, नौकर।