Manu Smriti
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येनास्य पितरो याता येन याताः पितामहाः ।तेन यायात्सतां मार्गं तेन गच्छन्न रिष्यति ।।4/178

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस मार्ग द्वारा हमारे पूर्वजों ने मुक्ति लाभ किया है सत्पुरुषों के उसी मार्ग पर हम को भी वेदानुकूल कर्मों को चलना चाहिए और इसी प्रकार के कर्म करने से दुःख नहीं होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस मार्ग से इसके पिता पितामह चले हों उस मार्ग में सन्तान भी चले, परन्तु जो सत्पुरूष पिता, पितामह हों उन्हीं के मार्ग में चलें और जो पिता, पितामह दुष्ट हों तो उनके मार्ग में कभी न चलें क्यों कि उत्तम धर्मात्मा पुरूषों के मार्ग में चलने से दुःख कभी नहीं होता । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
५९-जिस मार्ग से इस गृहस्थ के पिता पितामह चले हों, उस मार्ग से वह भी चले। परन्तु यह ध्यान रहे कि वह सत्पुरुष पिता पितामहों के ही मार्ग पर चले। क्योंकि सन्मार्ग से चलता हुआ कभी दुःख नहीं भोगता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(येन अस्य पितरः याता) जिस मार्ग पर पिता चलें (येन याताः पितामहाः) और जिस पर बाबा आजा चलें, (तेन यायात् सतां मार्गं) उसी शुभ मार्ग को चलें। (तेन गच्छन् न रिष्यते) उस मार्ग पर चलने से दुःख न होगा।
 
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