Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि अधम्र्म का फल अधम्र्मा को नहीं मिलता तो उसके पुत्र को मिलता है। यदि बेटे को न हो, तो उसके पौत्र को मिलता है। यदि पौत्र (पोते) को न मिला तो दौहित्र (नाती) को मिलता है। तात्पर्य यह है कि अधम्र्म निष्फल नहीं होता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यदि अधम्र का फल कत्र्ता की विद्यमानता में न हो तो पुत्रों यदि पुत्रों के समय में न हो तो नातियों - पोतों के समय में अवश्य प्राप्त होता है किन्तु यह कभी नहीं हो सकता कि कत्र्ता का किया हुआ कर्म निष्फल होवे ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि अधर्म का फल कर्त्ता की विद्यमानता में प्राप्त न हुआ हो तो पुत्रों के समय, और यदि पुत्रों के समय प्राप्त न हुआ हो तो पौत्रों के समय अवश्य प्राप्त होता है। किन्तु यह कभी नहीं हो सकता कि कर्ता का किया हुआ अधर्म निष्फल होवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यदि न आत्मनि) यदि अपने को नहीं तो (पुत्रेषु) पुत्रों को, (न चेत् पुत्रेषु) यदि पुत्रों का नहीं तो (नृप्तषु) पोतों को अधर्म अवश्य ही फल देगा। (न तु एव तु कृतः अधर्मः कर्तुंः भवति निष्फलः) किया हुआ अधर्म बिना फल लाये नहीं रहता। अर्थात् किसी को ऐसा नहीं समझना चाहिये कि अधर्मी लोगों को उसका फल नहीं मिलता। मिलता अवश्य है परन्तु धीरे धीरे।