Manu Smriti
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नाधर्मश्चरितो लोके सद्यः फलति गौरिव ।शनैरावर्त्यमानस्तु कर्तुर्मूलानि कृन्तति ।।4/172

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अधम्र्म शीघ्र फल नहीं देता है जैसे बीज बोने के पश्चात् पृथिवी शीघ्र फल नहीं देती, थोड़े समय उपरान्त फल देती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्य निश्चिय करके जाने कि इस संसार में जैसे गाय की सेवा का फल दूध आदि शीघ्र प्राप्त नहीं होता वैसे ही किये हुए अधर्म का फल भी शीघ्र नहीं होता किन्तु धीरे - धीरे अधर्मकत्र्ता के सुखों को रोकता हुआ सुख के मूलों को काट देता है, पश्चात् अधर्मी दुःख ही दुःख भोगता है । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘किया हुआ अधर्म निष्फल कभी नहीं होता परन्तु जिस समय अधर्म करता है, उसी समय फल भी नहीं होता; इसलिए अज्ञानी लोग अधर्म से नहीं डरते तथापि निश्चय जानो कि वह अधर्माचरण धीरे - धीरे तुम्हारे सुख के मूलों को काटता चला जाता है ।’’ (स० प्र० चतुर्थ प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि जैसे गाय की सेवा का फल दूध आदि शीघ्र प्राप्त नहीं होता, अथवा जैसे बीज से बोई हुई भूमि तत्काल फल नहीं देती, वैसे ही किये हुए अधर्म का फल शीघ्र प्राप्त नहीं होता। किन्तु धीरे-धीरे अधर्मकर्ता के सुखों को रोकता हुआ उसके सुख के मूलों को काट देता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(न अधर्मः चरितः लोके सद्यः फलति) जो अधर्म किया जाता है वह लोक में शीघ्र ही अपना कुरा फल नहीं दे देता। (गौः इव) जैसे पृथ्वी में बीज बोने से आज ही फल नहीं निकलता। (शनैः आवर्तमानः तु) धीरे धीरे फैलता हुआ (कर्तुः) अधर्म करने वाले की (मूलानि) जड़ों को (कृन्तति) काट डालता है।
 
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