Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अधम्र्मी और पापियों के धनादि का शीघ्र नाश देखकर, और धम्र्म में कट पाने पर भी अधर्म न करें अर्थात् धर्म को परित्याग न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यदि पापों से उनकी उन्नति और समृद्धि हो गई हैं तो भी) शीघ्र ही उलटा विनाश होता है यह समझते हुए धर्माचरण से कष्ट उठाता हुआ भी अधर्म में मन को न लगावे अर्थात् धर्म का ही पालन करता रहे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः, अधार्मिक पापियों के तात्कालिक सुख को देखकर, धर्म से कष्ट को पाता हुआ भी अधर्म में मन को न लगावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सीदन् अपि धर्मेण) धर्म-काय्र्य द्वारा कष्ट भोगता हुआ भी (न मनः अधर्मे निवेशयेत्) मन को अधर्म में न लगावें (अधामिकाणां पापानाम् आशु पश्यन् विपर्ययम्) अधर्मी पापियों के शीघ्र विपर्यय अर्थात् नाश को देखता हुआ। अर्थात् पापियों का हमेशा नाश होता है इसलिये कष्ट होने पर भी अधर्म न करें।