Manu Smriti
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अधार्मिको नरो यो हि यस्य चाप्यनृतं धनम् ।हिंसारतश्च यो नित्यं नेहासौ सुखं एधते ।।4/170

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो अधम्र्मी, अनृत, अपवित्र व अनुचित रीत्योपार्जित धन वाले, तथा हिंसक हैं वह इस लोक में मुख नहीं पाते।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो अधार्मिक मनुष्य हैं और जिस का अधर्म से संचित किया हुआ धन है और जो सदा हिंसा में अर्थात् वैर में प्रवृत्तरहता है वह इस लोक और परलोक अर्थात् परजन्म में सुख को कभी नहीं प्राप्त हो सकता । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
५७-जो मनुष्य अधार्मिक है, जिसने झूठ से धन का संचय किया व करता है, और जो सदा दूसरे की हानि में प्रवृत्त रहता है, वह यहां सुख नहीं पाता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो आदमी अधार्मिक है या जिसका झूठ ही धन है, जो हिंसा में रत है, (न इह असौ सुखं एधते) वह इस लोक में सुख नहीं पाता।
 
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