Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पुत्र और शिष्य से भिन्न अन्य किसी व्यक्ति पर दण्डा न उठाये अर्थात् दण्डे से मारे और क्रोधित होकर भी किसी को न मारे वध न करे, केवल उन - पुत्र और शिष्य को शिक्षा देने के लिये ही ताड़ना करे ।
टिप्पणी :
‘‘परन्तु माता, पिता तथा अध्यापक लोग ईष्या, द्वेष से ताड़न न करें किन्तु ऊपर से भयप्रदान और भीतर से कृपादृष्टि रखें ।’’
(स० प्र० द्वितीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
५६-पुत्र और शिष्य के बिना अन्य किसी को मारने के लिए क्रोध से न लाठी उठावे और न मारे। किन्तु पुत्र और शिष्य को भी अनुशासन के लिए ही ताड़ना देवे।