Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस कर्म के करने से मनुष्य की आत्मा को संतुष्टि एवं प्रसन्नता अनुभव हो उस - उस कर्म को प्रयत्नपूर्वक करे जिससे संतुष्टि एवं प्रसन्नता न हो उस कर्म को न करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः, जिस कर्म के करने से मनुष्य के अन्तरात्मा की प्रसन्नता हो, उस कर्म को यत्नपूर्वक करे, और इससे विपरीत कर्म को छोड़ देवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यत् कर्म कुर्वतोऽस्य) जिस कर्म के करने वाले पुरुष का (स्यात् परितोषः अन्तरात्मनः) अन्तरात्मा सन्तुष्ट हो (तत् प्रयत्नेन कुर्वीत) उसको प्रयत्न के साथ करें। (विपरीतं तु वर्जयेत्) उससे विरुद्ध को छोड़ दें।