Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
क्यों कि जितना परवश होना है वह सब दुःख, और जितना स्वाधीन रहना है वह सब सुख कहाता है यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानो ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘क्यों कि जो - जो पराधीनता है वह - वह सब दुःख और जो - जो स्वाधीनता है वह - वह सब सुख, यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानना चाहिए ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि सब प्रकार की पराधीनता दुःख है और सब प्रकार की स्वाधीनता सुख है। संक्षेप से इसे सुख-दुःख का लक्षण समझो।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पराये वश में रहने में बड़ा दुःख है। स्वतंत्र रहने में सुख है। (एतत् विद्यात्) यह जानना चाहिये (समासेन) संक्षेप से (लक्षणं सुख दुःखयोः) सुख और दुःख का लक्षण।