Manu Smriti
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सर्वं परवशं दुःखं सर्वं आत्मवशं सुखम् ।एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ।।4/160

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो कर्म परवश है वह दुःख है और जो कर्म स्ववश है वह सुख है। वह सुख दुःख का लक्षण है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
क्यों कि जितना परवश होना है वह सब दुःख, और जितना स्वाधीन रहना है वह सब सुख कहाता है यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानो । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘क्यों कि जो - जो पराधीनता है वह - वह सब दुःख और जो - जो स्वाधीनता है वह - वह सब सुख, यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानना चाहिए ।’’ (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि सब प्रकार की पराधीनता दुःख है और सब प्रकार की स्वाधीनता सुख है। संक्षेप से इसे सुख-दुःख का लक्षण समझो।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पराये वश में रहने में बड़ा दुःख है। स्वतंत्र रहने में सुख है। (एतत् विद्यात्) यह जानना चाहिये (समासेन) संक्षेप से (लक्षणं सुख दुःखयोः) सुख और दुःख का लक्षण।
 
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