Manu Smriti
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यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यत्नेन वर्जयेत् ।यद्यदात्मवशं तु स्यात्तत्तत्सेवेत यत्नतः ।।4/159

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो कर्म परवश है उसका परित्याग तथा स्ववश कर्म का यत्न सहित सेवन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्य जो पराधीन कर्म हो उस - उस को प्रयत्न से सदा छोड़े और जो - जो स्वाधीन कर्म हो उस - उस का सेवन प्रयत्न से किया करे । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘जो - जो पराधीन कर्म हो उस - उस का प्रयत्न से त्याग और जो - जो स्वाधीन कर्म हो उस - उस का प्रयत्न के साथ सेवन करे ।’’ (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
५३-मनुष्य को चाहिए कि जो जो पराधीन कर्म हो, उस उस को प्रयत्न से सेवन किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो जो काम पराये वश में हैं उनको छोड़ें। जो जो अपने आधीन हैं उनको नित्य करें। (इससे दासता नहीं आती। स्वतंत्रता रहती है)।
 
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