Manu Smriti
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दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः ।दुःखभागी च सततं व्याधितोऽल्पायुरेव च ।।4/157

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दुराचारी मनुष्य संसार में अपयश पाता है और सदैव दुःख तथा व्याधि ग्रसित रहने के कारण अल्पनीधित रहता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो दुष्टाचारी पुरूष है वह संसार में सज्जनों के मध्य में निन्दा को प्राप्त दुःखभागी और निरन्तर व्याधियुक्त होकर अल्पायु का भी भोगने हारा होता है । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
टिप्पणी :
‘‘और जो दुष्टाचारी पुरूष होता है वह सर्वत्र निन्दित दुःखभागी और व्याधि से अल्पायु सदा हो जाता है ।’’ (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
दुराचारी पुरुष लोक में निन्दित, दुःखभागी, तथा सतत व्याधि से अल्पायु होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
दुराचारी पुरुष लोक में निन्दा पाता है, और सदा रोग तथा अल्पायु आदि दुःखों में लिप्त रहता है।
 
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