Manu Smriti
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श्रुतिस्मृत्युदितं सम्यङ्निबद्धं स्वेषु कर्मसु ।धर्ममूलं निषेवेत सदाचारं अतन्द्रितः ।।4/155

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद शास्त्रानुकूल जो उत्तम पुरुषों का समाचार है वह धर्म का मूल है, आलस्य परित्याग कर उसी आचार पर सदैव चलें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. गृहस्थ सदा आलस्य को छोड़कर वेद और मनुस्मृति में वेदानुकूल कहे हुए अपने कर्मों में निबद्ध धर्म का मूल सदाचार अर्थात् जो सत्य और सत्पुरूष आप्त धर्मात्माओं का आचरण है, उसका सेवन सदा किया करें ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
५२-गृहस्थ आलस्यरहित होकर वेद तथा वेदानुकूल स्मृति से उक्त, अपने कर्मों में सम्यक्तया संबद्ध, और धर्म के मूल सदाचार का, कि जो सत्य व सत्पुरुष आप्त धर्मात्माओं का आचरण है, सदा सेवन किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
श्रुति और स्मृति में जो जो कर्म बताये गये हैं उनमें बँधा हुआ आलस्य छोड़कर सदा धर्म-पूर्वक सदाचार में रत रहें।
 
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