Manu Smriti
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मैत्रं प्रसाधनं स्नानं दन्तधावनं अञ्जनम् ।पूर्वाह्ण एव कुर्वीत देवतानां च पूजनम् ।।4/152
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विष्टात्याग (अर्थात् आवश्यकताओं की निवृत्ति) श्रंगारआदि, स्नान, दातुन, अंजन, देवता का पूजन, इन सब कामों को दोपहर (मध्याह्न) से प्रथम करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये ४।१५०-१५३ तक ४ श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं - इन श्लोकों का ‘सतोगुणवर्धन व्रत’ विषय से कोई सम्बन्ध नहीं है, अतः ये असंगत श्लोक हैं । ४।१५०वां श्लोक मृतकश्राद्ध का प्रतिपादक होने से मनु का नहीं हो सकता । क्यों कि मनु तो दैनिक जीवित श्राद्ध का विधान करते हैं । और ४।१५३ में दैवत- देवप्रतिमा वाले पवित्र स्थानों पर पर्वों पर जाने की बात मनुप्रोक्त नहीं हो सकती । क्यों कि मनु ने पर्वों पर विशेष यज्ञों का विधान किया है और ‘हौर्मेर्देवान्’ (३।८१) कहकर हवन से ही देवपूजा मानी है । और ४।१५१ में मल - त्याग निवास स्थान से दूर करना तो ठीक है, किन्तु पैरों को दूर से कैसे धोयेगा ? यदि पैर अपवित्र हैं, तो उन्हें धोना ही चाहिये, दूर से घृणा करने से कार्य कैसे चल सकता है, पैर तो शरीर के अंग हैं । अतः अमौलिक होने से ये श्लोक मनु प्रोक्त नहीं है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(मैत्रम्) मल-त्याग, पाखाना जाना, (प्रसाधनम्) शरीर शुद्धि, (स्नानम्) स्नान, (दन्तधावनम्) दाँत माँजना, (अंजनम्) सुरमा लगाना (पूर्वाह्ने एव कुर्वीत) प्रातः काल ही कर लेवें (देवतानां च पूजनम) देवयज्ञ अर्थात् होम आदि भी।
 
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