Manu Smriti
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पौर्विकीं संस्मरन्जातिं ब्रह्मैवाभ्यस्यते पुनः ।ब्रह्माभ्यासेन चाजस्रं अनन्तं सुखं अश्नुते ।।4/149

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पूर्व जन्म की जाति को स्मरण करता हुआ वेदाभ्यास ही करता है। वेदाभ्यास द्वारा सदैव सुख प्राप्त होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. पूर्वजन्म की अवस्था का स्मरण करते हुए फिर भी यदि वेद के अभ्यास में लगा रहता है तो निरन्तर वेद का अभ्यास करने से मोक्ष - सुख को प्राप्त कर लेता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
भूतकाल का ज्ञान हो जाने पर वह पुनः वेद ही का अभ्यास करता है, और उस निरन्तर वेदाभ्यास से अनन्त सुख अर्थात् मोख को पाता है। मैत्रं प्रसाधनं स्नानं दन्तधावनमञ्जनम्। पूर्वाह्ण एव कुर्वीत देवतानां च पूजनम्॥ ८०॥ ४९-गृहस्थ को चाहिए कि वह मल-त्याग, व्यायाम तथा तैल-मर्दनादि से शरीरसाधन, दन्तधावन, स्नान, अजंन और सन्ध्या-अग्निहोत्र प्रभातवेला में ही किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पौर्विकीं जातिं स्मरति) पहले जन्म का स्मरण इन साधनों से हो जाता है (1) वेदाभ्यासेन सततम् - नित्य वेद का अभ्यास करने से (2) शौच से, (3) तपसा-तप से (4) अद्रोहेण च भूतानाम्-प्राणियों के साथ हिंसा का भाव न रखने से।
 
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