Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नित्य वेदाभ्यास, पवित्रता, तप, जीवों पर दया यह सब कार्य करने से पूर्वजन्म (अगले जन्म) की जाति स्मरण (याद) होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्य निरन्तर वेद का अभ्यास करने से आत्मिक तथा शारीरिक पवित्रता से तथा तपस्या से और प्राणियों के साथ द्रोहभावना न रखते हुए अर्थात् अहिंसाभावना रखते हुए पूर्वजन्म की अवस्था को स्मरण कर लेता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, सतत वेद के अभ्यास से, पवित्रता से, तपस्या से और भूतों को मित्र की द्ष्टि से देखने से मनुष्य जन्म की पहली बातों को स्मरण करता है।