Manu Smriti
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वेदं एवाभ्यसेन्नित्यं यथाकालं अतन्द्रितः ।तं ह्यस्याहुः परं धर्मं उपधर्मोऽन्य उच्यते ।।4/147

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आलस्य परित्याग कर यथाकाल नित्य वेदों का पाठादि करें यह परम धर्म है, शेष सब उपधर्म है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
द्विज सदा जितना भी अधिक समय लगा सके उसके अनुसार आलस्यरहित होकर वेद का ही अभ्यास करे क्यों कि उस वेदाभ्यास को इस द्विज का सर्वोत्तम कत्र्तव्य कहा है अन्य सब कत्र्तव्य गौण हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
४८-गृहस्थ आलस्यरहित होकर यथावकाश नित्य वेद ही का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना किया करे। यह उस का परमधर्म है, अन्य सब उपधर्म कहे गये हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
नित्य ठीक समय पर आलस्य रहित होकर वेद का अभ्यास करें। यह तो मनुष्य का परम धर्म है। अन्य सब गौण धर्म (निचले धर्म) हैं।
 
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