Manu Smriti
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अनातुरः स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्ततः ।रोमाणि च रहस्यानि सर्वाण्येव विवर्जयेत् ।।4/144
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अनातुर, बिना आवश्यकता अपनी इन्द्रियों को स्पर्श न करें तथा गुप्त स्थान (अर्थात् काँख मलमूत्र स्थान) के रोम (बाल) भी स्पर्श न करें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
४६-स्वस्थ अवस्था में अपनी इन्द्रियों के छिद्रों को निष्कारण न छूए। और, गुप्तस्थान के सभी रोगों को छूना छोड़ दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अनातुरः) स्वस्थ पुरुष (स्वानि खानि न स्पृशेत्) अपनी गुप्त इन्द्रियों को न छुये। (अनिमित्ततः) बिना विशेष प्रयोजन के। (रोमाणि च रहस्यानि) न गुप्रस्थान के बालों को। (सर्वाणि एव विवर्जयेत्) इन सब को त्याग दें। अर्थात् न छुयें।
 
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