Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अभद्र को भी भद्र (अच्छा) कहना चाहिये, किसी से निरर्थक शत्रुता व विवाद न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. सदा भद्र अर्थात् सबके हितकारी वचन बोला करे शुष्कवैर अर्थात् बिना अपराध किसी के साथ विरोध न करे जो - जो दूसरे का हितकारी हो और बुरा भी माने तथापि कहे बिना न रहे ।
(स० प्र० ४ स०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार गृहस्थ सदा सब का हितकारी भला ही भला वचन कहा करे, और इसी प्रकार प्रत्युत्तर में भी भला ही बोले। एवं, उसे चाहिए कि वह बिना अपराध किसी के साथ विरोध वा विवाद न करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(भद्रं भद्रम् इति ब्रूयात्) बातचीत करने में ”भद्रं भद्रं“ “बहुत अच्छा ! बहुत अच्छा“ ऐसा कहें। (भद्रम् इति एव वा वदेत्) या केवल एक बार ’भद्र‘ ही कहें। (शुष्क वैरं विवादं च) व्यर्थ झगड़ा या विवाद (न कुर्यात् केन चित् सह) न करे किसी के साथ।