Manu Smriti
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सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यं अप्रियम् ।प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ।।4/138

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सत्य और मिष्ट भाषण करें यदि सत्य हो किन्तु कटु हो तो न कहें, तथा यदि प्रिय हो परन्तु असत्य हो तो भी न कहें यह नित्य का धर्म है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. सदा प्रिय सत्य दूसरे का हितकारक बोले अप्रिय सत्य अर्थात् काणे को काणा न बोले अनृत झूठ दूसरे को प्रसन्न करने के अर्थ न बोले । (स० प्र० चतुर्थ समु०)
टिप्पणी :
यह सनातन धर्म है । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०) ‘‘मनुष्य सदैव सत्य बोलें और दूसरे का कल्याणकारक उपदेश करें, काणे को काणा, मूर्ख को मूर्ख आदि अप्रिय वचन उनके सम्मुख कभी न बोलें और जिस मिथ्याभाषण से दूसरा प्रसन्न होता हो उसको भी न बोलें यह सनातन धर्म है ।’’ (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
४५-गृहस्थ सदा सत्य बोले और प्रिय बोले। किन्तु काणे को काण आदि अप्रिय सत्य न बोले। किंवा, दूसरे को प्रसन्न करने के लिए ऐसा प्रिय भी न बोले जो झूठ हो। यह सनातन धर्म है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सत्य बोलें, प्रिय बोलें। अप्रिय सत्य न बोलें। प्रिय असत्य भी न बोलें। यह सनातन धर्म है।
 
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