Manu Smriti
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वैरिणं नोपसेवेत सहायं चैव वैरिणः ।अधार्मिकं तस्करं च परस्यैव च योषितम् ।।4/133

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शत्रु, शत्रु का मित्र, अधर्मी, चोर, परस्त्री इन सब के संग में न रहें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गृहस्थ द्विज शत्रु और शत्रु के सहायक अधार्मिक, चोर, पराई स्त्री से मेलजोल न रखे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वैरिणं न उपसेवेत) शत्रु से हेल-मेल न करें (सहायं च एव वैरिणः) और न शत्रु के सहायक से। (अधार्मिकं तस्करं च) न अधर्मी चोर के साथ (परस्य एव च योषितम्) न पराई पत्नी से।
 
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