Manu Smriti
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अमावास्यां अष्टमीं च पौर्णमासीं चतुर्दशीम् ।ब्रह्मचारी भवेन्नित्यं अप्यृतौ स्नातको द्विजः ।।4/128

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गृहस्थ द्विज को चाहिये कि वह ऋतुकाल होते हुए भी अमावस्या, अष्टमी, पूर्णिमा और चतुर्दशी के दिन ब्रह्मचारी रहे ।
टिप्पणी :
‘‘जब ऋतुदान देना हो तब पर्व अर्थात् जो उन ऋतुदान १६ दिनों में पौर्णमासी, अमावस्या, चतुर्दशी वा अष्टमी आवे उसको छोड़ देवें । इनमें स्त्री पुरूष रतिक्रिया कभी न करें ।’’ (संस्कारविधि गर्भादान संस्कार ऋतुदान काल प्रकरण)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अमावस्या, अष्टमी, पौर्णमासी, चतुर्दशी इन तिथियों में बुद्धिमान् स्नातक को चाहिये कि (अपि ऋतौ) ऋतुकाल होने पर भी ब्रह्मचारी रहें। स्त्री प्रसंग न करें।
 
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