Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आकाश के पश्चात् सब गन्धों की ज्ञाता (पहिचानने वाली), पवित्र और बलवान वायु की उत्पत्ति हुई। इस का गुण स्पर्श है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(आकाशात् तु विकुर्वाणात्) उस आकाश के विकारोत्पादक अंश से (सर्वगन्धवहः) सब गन्धों को वहन करने वाला शुचिः शुद्ध और बलवान् शक्तिशाली (वायुः) ‘वायु’ (जायते) उत्पन्न होता है (सः वै) वह वायु निश्चय से (स्पर्शगुणः) स्पर्श गुण वाला (मतः) माना गया है