Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
कर्णश्रवेऽनिले रात्रौ दिवा पांसुसमूहने ।एतौ वर्षास्वनध्यायावध्यायज्ञाः प्रचक्षते ।।4/102
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
रात्रि के समय कान में वायु सनसनाती हो वा दिन में धूल पढ़ती हो तो वर्षा ऋतु में उसी दिन अनध्याय जाने, ऐसा अनध्याय ज्ञाताओं ने कहा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये (४।९५-१२७) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं - (क) ये सभी श्लोक विषय बाह्य होने से प्रक्षिप्त हैं । इनका ‘सतोगुणवर्धन’ विषय से कोई सम्बन्ध नहीं है । (ख) इन श्लोकों में ४।१०३ में तो ‘मनुरब्रवीत्’ कहकर प्रक्षेपक ने इन्हें मनुप्रोक्त कहने का दुष्प्रयास ही किया है । क्यों कि मनु ने स्वयं अपना नाम लेकर कोई प्रवचन नहीं किया । (ग) ४।१०४ श्लोक में शिष्यों को पढ़ाते समय विशेष अवकाशों का संकेत किया है, इनका गृहस्थ के व्रतों से क्या सम्बन्ध है ? इनका वर्णन तो पठन - पाठन विषय में (द्वितीयाध्याय में) तो संगत था, यहाँ नहीं । और वेदादि के पढ़ने में अवकाशों का निर्धारण मनु की दूसरी मान्यताओं से विरूद्ध होने से मान्य नहीं हो सकता । मनु के अनुसार वेद का स्वाध्याय करना दैनिक कत्र्तव्य है । एतदर्थ १।८७-९०,२।१५,२।१०६,२।१०७,४।१९,४।३५ तथा ३।७५ श्लोक द्रष्टव्य है । किन्तु यहां वर्ष में साढ़े चार मास ही वेद पढ़ने का विधान किया है । और शुक्लपक्ष में वेद पढ़ना, कृष्णपक्ष में न नहीं बिजली चमक रही हो, गरज गरजकर वर्षा हो रही हो (४।१०३) तो वर्षा से भिन्न ऋतुओं में भी वेदों को न पढ़े । ४।१०५ में आकाश में उत्पातसूचक शब्द हो रहा हो, ग्रहों का परस्पर संघर्ष हो रहा हो, अथवा भूकम्प हो, तो वेदों को न पढ़े । ४।१०६ में होम की अग्नि प्रज्वलित करते समय, सूर्य की ज्योति रहने पर, वेदों को न पढ़े । इस प्रकार के अवकाशों का विधान मनुसम्मत कदापि नहीं हो सकता । क्यों कि इनका दैनिक महायज्ञों से विरोध तो है ही साथ ही दैनिक वेदाध्ययन की मान्यता का भी खण्डन हो रहा है । और सूर्य की ज्योति रहने पर वेदों को न पढ़ने की बात तो वेद - पाठ में सबसे बड़ी बाधा है । दिन और रात दोनों में निषेध होने से वेदों को पढ़ा ही न जा सकेगा ? (घ) इसी प्रकार ४।९९, १०८ श्लोकों में शूद्र के पास वेद न पढ़ने की बात भी अवैदिक है । क्यों कि जब स्वयं वेदों में शूद्रों को भी वेद पढ़ने का समान अधिकार दिया है, तो उनके पास न पढ़ने की बात मिथ्या ही है । यह भावना शूद्रों को वेद न पढ़ाने की मान्यता से अनुप्राणित एवं पक्षपातपूर्ण होने से मान्य नहीं हो सकती । (ड) ४।१०९ - १११,११७,१२४ श्लोकों में मृतक श्राद्ध खाकर वेद न पढ़ने की बात भी मनु से विरूद्ध है । क्यों कि मनु ने दैनिक (जीवित पितरों का) श्राद्ध ही करने का ३।८२ में विधान किया है । (च) ४।११२ में मांस तथा सूतकान्न खाकर वेद न पढ़ने की बात मनु की नहीं है । क्यों कि मनु ने मांसभक्षण का ‘तस्मान्मांसं विवर्जयेत्’ (५।४८) सर्वथा निषेध किया है । और सूत कान्न की मान्यता भी सत्य नहीं है, इसके लिये पंच्चमाध्याय के ५८ - १०४ श्लोकों पर टिप्पणी द्रष्टव्य है । (छ) और ४।११३ में दोनों सन्ध्याओं के समय तथा अमावस्यादि पर्वों पर वेद न पढ़ने की बात मनु से विरूद्ध है । क्यों कि मनु के अनुसार दोनों समय ब्रह्मयज्ञ व देवयज्ञ का विधान सन्ध्याकालों में ही किया है । और पर्वों पर विशेष यज्ञों का विधान किया है । क्या बिना वेद - मन्त्रों के ही यह याज्ञिक क्रियाकलाप सम्भव हो सकता है ? (ज) और ४।११६ में श्मशान में वेद न पढ़ने की बात भी असंगत है । क्यों कि अन्त्येष्टि संसार तो वेद - मन्त्रों से श्मशान में ही किया जाता है । अतः ये सभी श्लोक मनु की मान्यताओं से विरूद्ध एवं विषय - विरूद्ध होने से प्रक्षिप्त हैं ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS