Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
रात्रि के चौथे प्रहर अथवा चार घड़ी रात से उठे आवश्यक कार्य धर्म और अर्थ शरीर के रोगों और उनके कारणों को और परमात्मा का ध्यान करे, कभी अधर्म का आचरण न करे ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
३८-गृहस्थ रात्रि के चौथे पहर, अर्थात् चार घड़ी रात रहे उठे। एवं, उठ कर धर्म तथा अर्थ, और शरीर के रोग तथा उनके निदानों का चिन्तन करे, और वेद के सारभूत परमात्मा का ध्यान करे।१
१. स० स० ४। जैसे, प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे आदि प्रातःकालीन प्रार्थना सं० वि० गृहाश्रम में लिखी है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत) ब्राह्ममुहूर्त अर्थात् उषाकाल से पहले उठें। (धर्मार्थौ च अनुचिन्तयेत्) धर्म अर्थात् परोपकार और अर्थ अर्थात् अपने लिये धन कमाने की विधियों का चिंतन करें। (कायल्केशान् च तद्-मूलान्) अर्थात् धर्म-अर्थ के करने में शरीर को क्या कष्ट होगा उस पर भी विचार करें। (वेद तत्त्वार्थम् एव च) और वेद के तत्व पर भी विचार करें।