Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस रथ में ऐसे बैल जुते हों जिनको रथ में चलना सिखाया गया हो तथा लक्षण, रूप रंग जिसका उत्तम हो उस रथ पर चढ़ें परन्तु बैलों को पैने से न मारें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सिखाये हुए सुन्दर लक्षणों से युक्त सुन्दर रंग - रूप से युक्त शीघ्रगामी पशुओं से चाबुक की मार से बहुत पीड़ा न देता हुआ सवारी करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु सदा सधे हुए, शीघ्रगामी, सुलक्षण तथा रंग-रूप वाले उत्तम बैलों से जुते रथ पर सवारी करे, जिन्हें बार बार चाबुक लगाने की आवश्यकता न पड़े।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(विनीतैः तु व्रजेत् नित्यम्) सदा शिक्षित घोड़े आदि पर चले। (आशुगैः) तेज चलने वालों पर। (लक्षण-अन्वितैः) शुभ लक्षण वालों पर। (वर्ण + रूप + उपसंपन्नैः) अंग और रूप में जो सुन्दर हो उन पर। (प्रतोदेन) कोड़े या अंकुश से (अतुदन्) पीड़ा न देता हुआ (मृशम्) बहुत। अर्थात् सुन्दर घोड़े, हाथी आदि पर सवारी करें और उनको बहुत न मारें।