Manu Smriti
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नाविनीतैर्भजेद्धुर्यैर्न च क्षुध्व्याधिपीडितैः ।न भिन्नशृङ्गाक्षिखुरैर्न वालधिविरूपितैः ।।4/67

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस रथ में ऐसा बैल जुता हो जिसे रथ में न सिखाया गया हो वा क्षुधा पीड़ित, प्यासा, रोगी व जिसके सींग, आँख, खर तथा पूँछ खण्डित हो गया हो ऐसे रथ पर न बैठें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
बिना सिखाये हुए भूख और रोग से पीड़ित जिनके सींग, नेत्र और खुर टूट गये हैं जिनकी पूंछ कटी या घायल हो, ऐसे घोड़े, बैल आदि पशुओं पर चढ़कर न जाये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
२७-अनसधे मर्खने, भूख या व्याधि से पीड़ित, टूटे फूटे या फटे सींगों आंखों या खुरों वाले, तथा कटी पूंछ वाले बैलों से जुते रथ पर सवारी न करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(न अविनीतैः व्रजेत् धुर्यैः) न चले बिना सीखी हुई सवारी अर्थात् घोड़ा आदि पर। (न च क्षत्-व्याधि पीडितैः) न उन पर जो भूख से पीड़ित है। (न भिन्न + श्रृंग + अक्षि + खुरैः) न उन पर जिनके सींग, आँख या खुर टूटे हों। (न बालधि विरूपितैः) न उन पर जिनकी पूँछ घायल हो गई हो।
 
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