Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तीनों युगों अर्थात् त्रेता, द्वापर, कलियुग की संध्या और सन्ध्यांश की संख्या एक सहस्र (हजार) और एक सौ वर्ष* के घटाने से होती है।
टिप्पणी :
3000 वर्ष का त्रेता युग और 300 वर्ष की सन्ध्या और 300 वर्ष का सन्ध्यांश, 2000 वर्ष का द्वापर 200 वर्ष की सन्ध्या और 200 वर्ष का सन्ध्यांश, 1000 वर्ष का कलियुग, 100 वर्ष की सन्ध्या और 100 वर्ष का सन्ध्यांश।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
च और इतरेषु त्रिषु शेष अन्य तीन - त्रेता, द्वापर, कलियुगों में ससंध्येषु संसध्यांशेषु ‘संध्या’ नामक कालों में तथा ‘संध्यांश’ नामक कालों में सहस्त्राणि च शतानि एक - अपायेन क्रमशः एक हजार और एक - एक सौ घटा देने से वर्तन्ते उनका अपना - अपना कालपरिमाण निकल आता है अर्थात् ४८०० दिव्यवर्षों का सतयुग होता है, उसकी संख्याओं मं एक सहस्त्र और संध्या व संध्यांश में एक - एक सौ घटाने से ३००० दिव्यवर्ष + ३०० संध्यावर्ष + ३०० संध्यांशवर्ष - ३६०० दिव्यवर्षों का त्रेतायुग होता है । इसी प्रकार - २०००+२००+२००- २४०० दिव्यवर्षों का द्वापर और १०००+१००+१०० - १२०० दिव्यवर्षों का कलियुग होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सन्ध्या और सन्ध्यांश सहित अन्य तीनों युगों में हजार और सैंकड़े क्रमशः एक एक कम होते हैं।१
१. एवं, युग-गणना इस प्रकार होगी-
कृत ४०००+४००+४०० ४८०० दैविक वर्ष
त्रेता ३०००+३००+३०० ३६०० दैविक वर्ष
द्वापर २०००+२००+२०० २४०० दैविक वर्ष
कलि १०००+१००+१०० १२०० दैविक वर्ष
इस का मानुष वर्ष में परिवर्तन ३६० से गुणा करने पर इस प्रकार होगा-
कृत १७२८००० मानुष वर्ष
त्रेता १२९६००० मानुष वर्ष
द्वापर ८६४००० मानुष वर्ष
कलि ४३२००० मानुष वर्ष
४३,२०,०००