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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
नोपगच्छेत्प्रमत्तोऽपि स्त्रियं आर्तवदर्शने ।समानशयने चैव न शयीत तया सह ।।4/40
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
यद्यपि अधिक कामातुर होवें तो भी रजोदर्शन वाली स्त्री से रति कदापि न करें तथा उसके बराबर शय्या पर स्त्री के सहित न सोवें।
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Commentary by
: पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कामातुर होता हुआ भी मासिक धर्म के दिनों में स्त्री से उपभोग न करे और उसके साथ एक बिस्तर पर न सोये ।
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Commentary by
: पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१३-कामपीड़ित गृहस्थ भी कभी रजोदर्शन-काल में स्त्री का संग न करे और न उसके साथ एक बिछौने पर लौटे।
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(न उप गच्छेत् प्रमत्तः अपि स्त्रियं आर्तवदर्शने) चाहे कितना ही कामातुर क्यों न हो रजस्वला स्त्री से उपभोग न करें। और न उसके साथ एक चारपाई पर सोवें।
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