Manu Smriti
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नोपगच्छेत्प्रमत्तोऽपि स्त्रियं आर्तवदर्शने ।समानशयने चैव न शयीत तया सह ।।4/40

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यद्यपि अधिक कामातुर होवें तो भी रजोदर्शन वाली स्त्री से रति कदापि न करें तथा उसके बराबर शय्या पर स्त्री के सहित न सोवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कामातुर होता हुआ भी मासिक धर्म के दिनों में स्त्री से उपभोग न करे और उसके साथ एक बिस्तर पर न सोये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१३-कामपीड़ित गृहस्थ भी कभी रजोदर्शन-काल में स्त्री का संग न करे और न उसके साथ एक बिछौने पर लौटे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(न उप गच्छेत् प्रमत्तः अपि स्त्रियं आर्तवदर्शने) चाहे कितना ही कामातुर क्यों न हो रजस्वला स्त्री से उपभोग न करें। और न उसके साथ एक चारपाई पर सोवें।
 
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