Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
देवताओं के चार सहस्र (हजार) वर्ष का सतयुग होता है। युग के प्रथम चार सौ वर्ष की देवताओं की सन्ध्या कहलाती है, और युग के अन्त पर उतना ही सन्ध्यांश कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
तत् चत्वारि सहस्त्राणि वर्षाणां कृतं युगम् आहुः उन देवताओं ६७ वें में जिनके दिन - रातों का वर्णन है के चार हजार दिव्य वर्षों का एक ‘सतयुग’ कहा है (तस्य) इस सतयुग की यावत् शती सन्ध्या उतने ही सौ वर्ष की अर्थात् ४०० वर्ष की संध्या होती है और तथाविधः उतने ही वर्षों का अर्थात् संध्यांशः संध्याशं का समय होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
४००० दैविक वर्षों का कृतयुग (सत् युग) कहलाता है। और उसके उतने ही सैंकड़े अर्थात् ४०० वर्षों की सन्ध्या तथा उसी तरह ४०० वर्षों का सन्ध्यांश होता है।