Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
स्वाध्याय और शुभकर्मों में सदैव रत रहें तथा केश (सर के बाल), नख, दाढ़ी कटाकर छोटे रखें, श्वेत वस्त्र धारण करें, शुचि (पवित्र) रहें तथा आत्मा को इन्द्रियों के वशीभूत न होने दें वरन् इन्द्रियों को आत्मा का दास जानें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. केश, नाखून और दाढ़ी कटवाता रहे सहिष्णु रहे श्वेतवस्त्र धारण करे स्वच्छता रखे और प्रतिदिन वेदों के स्वाध्याय और अपनी उन्नति में लगा रहे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१२-गृहस्थ केश नख और दाढ़ी-मूंछ मुंडवा कर साफ रहे, इन्द्रियों का दमन करे, स्वच्छ वस्त्र पहिने, अन्दर बाहर से पवित्र हो, और नित्य स्वाध्याय में युक्त तथा शरीर आत्मा के हितों में रत हो।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(क्लृप्त + केश + नख + शमश्रुः) बाल, नाखून, डाढ़ी, मौंछ आदि को यथाविधि कटवाकर (दान्तः) इन्द्रियों को वश में रख के (शुक्ल + अम्बरः) स्वच्छ वस्त्र धारण करें, (शुचि) पवित्र (स्वाध्याये च एव युक्तः) और स्वाध्याय में लगा हुआ (स्यात्) रहे। (नित्यं) सदा (आत्म हितेषु च) आत्मोन्नति करने में भी।