Manu Smriti
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शक्तितोऽपचमानेभ्यो दातव्यं गृहमेधिना ।संविभागश्च भूतेभ्यः कर्तव्योऽनुपरोधतः ।।4/32

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ब्रह्मचारी वा सन्यासी आदि स्वयमपाकी नहीं है गृहस्थ अपने शक्त्यनुसार उनको भोजनादि दे तत्पश्चात् बालकों से जो अन्न जल बचे वह अन्य जीवों को दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गृहस्थी को अपने हाथ से जो पका नहीं सकते हैं, ऐसे ब्रह्मचारी, संन्यासी आदि को अन्न देना चाहिए और जिससे परिवार के भरण - पोषण में बाधा न पड़े इस प्रकार प्राणियों - असहाय, विकलांगादि मनुष्यों तथा कुत्ता, पक्षी आदि के लिये भोजन का भाग भी निकालना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(शक्तितः) शक्ति के अनुसार (अपचमानेभ्यः) उन सन्यासी या ब्रह्मचारी आदि के लिये जो स्वयं अपना खाना नहीं पकाते अर्थात् जिनका घर द्वार नहीं है, (दातव्यं गृहमेधिना) गृहस्थ को देना चाहिये। और बिना किसी रुकावट के सब प्राणियों के लिये उनके अधिकार के अनुसार बाँटकर देना चाहिये। गृहस्थी का कत्र्तव्य है कि सन्यासी ब्रह्मचारी आदि को अवश्य दें। और गाय, कुत्ता आदि प्राणियों का भी भाग अलग निकाल दें।
 
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