Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गृहस्थ, वेद और वर्णों के आचरणी पुरुषों का पूजन हवन करें और भोजन योग्य पदार्थों से आतिथ्य सत्कार करें, यदि वेद विरुद्ध आचरण व कर्म हो तो उसकी पूजा न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. वेदों के विद्वान्, ज्ञानी और जो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके स्नातक बने हैं ऐसे वेदपाठी पिता - माता आदि गृहपतियों का देय पदार्थों और भोजन आदि से सत्कार करे और जो इनसे विपरीत हैं उन्हें छोड़दे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वेदविद्या व्रत स्नातान्) वेद पढ़े हुए ज्ञानी और ब्रह्मचर्य व्रत को पालने वाले (गृहमेधिनः) धर्म-पूर्वक गृहस्थ का पालन करने वालों का (पूजयेत् हव्य कव्येन) आवश्यक पदार्थों द्वारा सत्कार करें। (विपरीतान् च वर्जयेत्) इनसे विरुद्ध लोगों का सत्कार न करें। ’हव्य‘ का अर्थ है सामग्री जो होम में डाली जाती है। ’कव्य‘ का अर्थ है भोजन, रोटी, दाल, आदि जिनको पकाकर खाने के काम में लाते हैं। ’हव्य कव्य‘ मुहावरे में आवश्यक वस्तुओं के नाम हैं जैसे भोजन, वस्त्र आदि।