Manu Smriti
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पाषाण्डिनो विकर्मस्थान्बैडालव्रतिकाञ् शठान् ।हैतुकान्बकवृत्तींश्च वाङ्गात्रेणापि नार्चयेत् ।।4/30

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि पाखण्ड, गर्हित मांस द्वारा उदर पोषणकत्र्ता, विडालवृत्तिक, स्वाध्याय न करने वाले, कुतर्की, यह सब अतिथि काल में आ जावें तो वाणी (वाक्) मात्र से भी उनका आतिथ्य न करें किन्तु भोजन अवश्य दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पाखण्डी वेदों की आज्ञा के विरूद्ध चलने वाले विडालवृत्ति वाले हठी बकवादी और बगुलाभक्त मनुष्यों का वाणी से भी सत्कार नहीं करना चाहिए । (पू० प्र० १४३)
टिप्पणी :
‘‘किन्तु जो पाखण्डी, वेदनिन्दक, नास्तिक, ईश्वर, वेद और धर्म को न मानें अधर्माचरण करने हारे हिंसक, शठ मिथ्याभिमानी कुतर्की और बकवृत्ति अर्थात् पराये पदार्थ हरने वा बहकाने में बगुले के समान अतिथि वेषधारी बन के आवें उनका वचनमात्र से भी सत्कार गृहस्थ कभी न करे ।’’ (सं० वि० गृहा०) ‘‘(पाखंडी) अर्थात् वेदनिन्दक, वेदविरूद्ध आचरण करने हारे जो वेदविरूद्ध कर्म का कत्र्ता मिथ्या भाषणादियुक्त, जैसे बिड़ाल छिप और स्थिर रहकर ताकता - ताकता झपट से मूषे आदि प्राणियों को मार अपना पेट भरता है, वैसे जनों का नाम वैडालवृत्ति अर्थात् हठी, दुराग्रही, अभिमानी आप जाने नहीं औरों का कहा माने नहीं कुतर्की, व्यर्थ बकने वाले जैसे कि आजकल के वेदान्ती बकते हैं, हम ब्रह्म और जगत् मिथ्या है, वेदादि शास्त्र और ईश्र भी कल्पित है, इत्यादि गपोड़ी हांकने वाले जैसे बक एक पैर उठा, ध्यानावस्थित के समान होकर झट मच्छी के प्राण हरके अपना स्वार्थ सिद्ध करता है, वैसे आजकल के वैरागी और खाखी आदि हठी दुराग्रही, वेदविरोधी हैं ; ऐसों का सत्कार वाणीमात्र से भी न करना चाहिए ।’’ (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१. वैडालव्रतिक तथा वकवृत्ति के लक्षण इसी अध्याय में आगे मनु ने दिए हैं। परन्तु गृहस्थ को चाहिए कि वह पाखण्डियों (वेदनिन्दक नास्तिक, जो वेद ईश्वर और धर्म को न मानें), अधर्माचरण करने वालों, विल्लाभगतों, शठों, कुतर्कियों तथा बगुलाभगतों का, जोकि अतिथि-वेषधारी बन कर आए हों, कभी वचनमात्र से भी सत्कार न करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पाषण्डिनः) पाखंडी, (विकर्मस्थान्) कुकर्मी (वैडालव्रतिकान्) बिल्ली की सी वृत्ति वाले (शठान्) दंभी (हेतुकान्) कुतर्क (बकवृत्तीन्) बगले की सी वृत्ति वाले। ऐसे लोगों का (वाक् मात्रेण अपि न अर्चयेत्) वाणी मात्र से भी सत्कार न करें।
 
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