Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. गृहस्थ प्रतिदिन दिन - रात के आदि और अंत में अर्थात् प्रातः सांय सन्धिवेलाओं में अग्निहोत्र करे और आवे मास के अन्त में दर्शयज्ञ अर्थात् अमावस्या का यज्ञ करे तथा इसी प्रकार मास पूर्ण होने पर पूर्णिमा के दिन पौर्णमास यज्ञ करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१०-गृहस्थ सदा दिन के प्रारम्भ और अन्त में प्रातःकाल तथा सायंकाल में अग्निहोत्र किया करे। और पक्ष के अन्त में दर्शेष्टि (आमावास्येष्टि) तथा पौर्णमासेष्टि से यज्ञ किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अग्निहोत्रं च जुहुयात्) और अग्निहोत्र करें। (आदि + अन्ते द्यु निशोः) रात दिन के आरम्भ और अन्त में सदा। (दर्शेन च अर्धमास + अन्ते) अर्थात् आधे मास के समाप्त होने पर दर्शयज्ञ अर्थात् अमावस्या का यज्ञ करें। (पौर्णमासेन च एव हि) मास के अन्त में पूर्णमासी के दिन पौर्णमास यज्ञ करें। ’दर्श‘ का अर्थ है शुक्लपक्ष की द्वितीया जिस दिन चन्द्रदर्शन होता है। दर्शयज्ञ अमावस्या से आरंभ होता है। अतः अमावस्या से आरंभ होने वाले यज्ञ को दर्शयज्ञ कहते हैं।