Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
ज्ञानेनैवापरे विप्रा यजन्त्येतैर्मखैः सदा ।ज्ञानमूलां क्रियां एषां पश्यन्तो ज्ञानचक्षुषा ।।4/24
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रत्येक कर्म का मूल ’ज्ञान‘ है अतएव बुद्धिमान पुरुष ज्ञान दृष्टि से देख इन यज्ञों (मखों) का यजन (देवताओं की पूजा) करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये श्लोक प्रसंग विरूद्ध हैं । ४।२१ श्लोक में कहा है कि गृहस्थियों को पंच्चमहायज्ञ अवश्य करने चाहिये । और ४।२५ में अग्निहोत्रादि के करने का समय बताया है । किन्तु इन श्लोकों में यज्ञों के विकल्प दिये गये हैं, जिन विकल्पों के साथ मनुविहित पंच्चमहायज्ञों की कोई संगति नहीं है । यदि इन विकल्पों को स्वीकार किया जाये तो पंच्चमहायज्ञों की अनिवार्य व्यवस्था गलत सिद्ध हो जायेगी ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS