Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यथा शक्ति नित्यकर्म (अर्थात् पंचमहायज्ञ का) त्यागन न करें। पंच यज्ञ हैं -1-ब्रह्मयज्ञ, 2-देवयज्ञ, 3-भूतयज्ञ, 4-पितृयज्ञ, तथ 5-अतिथि यज्ञ।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ऋषियज्ञ, देवयज्ञ, बलि - वैश्वदेवयज्ञ, अतिथियज्ञ और पितृयज्ञ इनको सदा ही जहां तक हो कभी न छोड़े ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
९-गृहस्थ ऋषियज्ञ (ब्रह्मयज्ञ), देवयज्ञ, भूतयज्ञ, नृयज्ञ और पितृयज्ञ, इनको यथाशक्ति कभी न छोड़े।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जहाँ तक बन पड़े ऋषियज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, नरयज्ञ और पितृयज्ञ का कभी त्याग न करें। इन यज्ञों की व्याख्या के लिये देखो अध्याय 3 श्लोक 52, 53।