Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मनुष्य शास्त्र में जैसे 2 परिश्रम तथा अभ्यास करता है वैसे 2 उसके अर्थ को समझता है और ज्ञान को लाभ करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्य जैसे - जैसे शास्त्र का विचार कर उसके यथार्थ भाव को प्राप्त होता है वैसे अधिक जानता जाता है और इसकी प्रीति विज्ञान ही में होती जाती है ।
(सं० वि० गृहाश्रम वि०)
टिप्पणी :
‘‘क्यों कि जैसे - जैसे मनुष्य शास्त्रों को यथावत् जानता है वैसे - वैसे उस विद्या का विज्ञान बढ़ता जाता, उसी में रूचि बढ़ती रहती है ।’’
(स० प्र० ४ स०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि जैसे-जैसे पुरुष शास्त्र का विचार कर उसके यथार्थ भाव को प्राप्त होता है, वैसे-वैसे वह अधिकाधिक जानता जाता है और उसकी प्रीति विज्ञान में होती जाती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जैसे जैसे मनुष्य शास्त्र पढ़ता है, वैसे वैसे वह ज्ञानी होता है और (विज्ञानं च अस्य रोचते) विज्ञान में उसकी रुचि बढ़ती है।