Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस धन द्वारा स्वाध्याय (वेदाध्ययन) में व्यतिक्रम हो उसका परित्याग कर दें। जिससे वेदाध्ययन में व्यतिक्रम न होवे ऐसी विधि से कार्य साधन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो स्वाध्याय और धर्मविरोधी व्यवहार वा पदार्थ हैं उन सब को छोड़ देवे जिस किसी प्रकार से विद्या को पढ़ाते रहना ही गृहस्थ को कृतकृत्य होना है ।
(सं० वि० गृहाश्रम वि०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
७-गृहस्थ उन सब व्यवहारों व पदार्थों को छोड़ दे जोकि स्वास्थ्याय के विरोधी हैं। क्योंकि जिस किसी तरह विद्या-धर्म का प्रचार करना ही गृहस्थ का कृत्यकृत्य होना है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
धन कमाने के जो साधन स्वाध्याय के विरोधी हों उन सब को त्याग दें। (यथा तथा) जैसे बन पड़े वैसे ही (अध्यापयन् तु) पढ़ना पढ़ाना चाहिये (सा हि अस्य कृतकृत्यता) यही उस ब्राह्मण की सफलता है। अर्थात् ब्राह्मणत्व इसी में है कि किसी प्रकार पठन पाठन हो सके।